Synonyms – Paratyphoid fever , Enteric fever .

साल्मोनेल्लोसिस एक भयंकर संक्रामक रोग है जो साल्मोनेल्ला प्रजाति के बैक्टीरिया द्वारा फैलता है । यह लगभग सभी पशुओं में पाया जाता है । रोगी पशु में सेप्टिसीमिया व गंभीर दस्त होती है । आर्थिक दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण बीमारी है क्योंकि इसमें पशुओं की मृत्यु दर बहुत अधिक होती है । जो बच भी जाते हैं उनकी उत्पादन क्षमता काफी कम हो जाती है । यह जूनोटिक बीमारी भी है । हमारे देश में मनुष्य में भी बड़े पैमाने पर यह बीमारी होती है । संक्रमित अण्डे व मांस खाने से मनुष्य में भयंकर रोग प्रकोप होता है ।
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Table of Contents
साल्मोनेल्लोसिस का कारण क्या है । ETIOLOGY OF SALMONELLOSIS
ETIOLOGY- Bacteria – Salmonella species
इस बैक्टीरिया की लगभग एक हजार प्रजातियां हैं , जो सभी प्रजातियां रोग पैदा करती हैं । साल्मोनेल्ला बैक्टीरिया तेज धूप व गर्मी से मर जाते हैं लेकिन पानी , मिट्टी , गोबर तथा चारे में लगभग सात महीने तक जिंदा रह सकते हैं । गीली मिट्टी में तो ये लगभग एक वर्ष तक जिंदा रह जाते हैं ।
S. typhimurium , S. dublin – Cattle , Goat , Sheep , Horse
S. Abortivo equina – Horse
S. typhi , S. paratyphy – Man
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साल्मोनेल्लोसिस रोग का जनन कैसे होता है । PATHOGENESIS OF SALMONELLOSIS
बहुत कम व बहुत अधिक उम्र वाले पशु अधिक चपेट में आते हैं । रोगी पशु के सम्पर्क में आने से स्वस्थ पशु रोगग्रस्त हो जाते हैं । रोगी पशु के गोबर से दूषित आहार व पानी भी रोग फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते । साल्मोनेल्लोसिस का प्रकोप वातावरण के मध्यम तापमान तथा नमी में होता है , क्योंकि सूखे व धूप में बैक्टीरिया मर जाते हैं । Salmonella infection resistance Bacterial number increase in intestine Blood Bacteraemia Septicaemia Acute enteritis Abortion
इन्फेक्शन आहारनाल के जरिए शरीर में प्रवेश करता है जहां आंतों की म्युकस मेम्ब्रेन का भारी नुकसान होता है । बैक्टीरियल टॉक्सिन से म्युकोसा पर हेमोरेज व नेक्रोसिस हो जाता है । आंतों द्वारा सोडियम लवण का अवशोषण घटने व क्लोराइड अधिक छोड़ने से गंभीर दस्त हो जाते हैं । दस्त से डिहाइड्रेशन होता है ।
साल्मोनेल्लोसिस का लक्षण क्या हैं । SYMPTOMS OF SALMONELLOSIS
इसमें कोई विशेष लक्षण प्रकट नहीं होते हैं और पशु केरियर बना रहता है ।
( 1 ) Septicaemia
- चार महीने की उम्र से कम नवजात पशुओं में यह अवस्था मिलती है ।
- तेज बुखार ( 105-107° फा . ) , सुस्त व कमजोर ।
- गोबर सिमेन्ट या putty colour की , जिसमें ब्लड के थक्के आते हैं ।
- अधिकांश पशुओं की 1-2 दिन में ही मौत हो जाती है ।
- जो पशु बच जाते हैं उनके गोबर में जीवन भर बैक्टीरिया निकलते रहते हैं ।
( 2 ) Acute enteritis
- यह अवस्था एडल्ट एनिमल्स में मिलती है ।
- तेज बुखार ( 104-106 ° फा . ) ।
- पानी जैसे तेज दस्त जिसमें ब्लड क्लॉट्स व म्युकस भी निकलता है ।
- खूनी दस्त के कारण एनीमिया , बार – बार दस्त से पेटदर्द ।
- चारा – दाना खाना बिल्कुल बंद लेकिन प्यास अधिक लगती है ।
- ग्याभन पशुओं में गर्भपात हो जाता है ।
- पेटदर्द के कारण पैर पटकना , जमीन पर तड़पना तथा पेट की ओर देखना ।
- गंभीर दस्त व डिहाइड्रेशन के कारण पशु की 2-5 दिन में मौत हो जाती है ।
साल्मोनेल्लोसिसSEQUELAE OF SALMONELLOSIS
- गाय – भैंसों में रोग की परिणिति गर्भपात के रूप में होती है ।
- घोड़ी व गायों की बछियों के पैर के जोड़ों में दर्दनाक पॉलीआर्थ्रोइटिस होता है ।
- कान व पूंछ के आखरी भाग में गेन्द्रिन होने से सूख कर काले हो जाते हैं ।
साल्मोनेल्लोसिस का डायग्नोसिस कैसे करें । DIAGNOSIS OF SALMONELLOSIS
- जीवित पशुओं में डायग्नोसिस करना बहुत मुश्किल है ।
- हिस्ट्री , लक्षण तथा बैक्टीरियल कल्चर के आधार पर ।
- Differential diagnosis – Coccidiosis , Pasteurellosis , Poisoning , White scour , Liver fluke infestation , Johne’s disease .
साल्मोनेल्लोसिस का उपचार क्या है । TREATMENT OF SALMONELLOSIS
- ब्रॉडस्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक्स – Sulpha drugs ( Sulpha trimethoprim )
- सपोर्टिव ट्रीटमेन्ट – Fluid therapy , astringent , demuisent .
- इलेक्ट्रोलाइट्स- Ringer’s lactate – I / V , मुंह से भी इलेक्ट्रोल दें ।
- इलाज जितना जल्दी हो सके शुरु करना चाहिए , वरना देरी से आंतों की म्युकस मेम्ब्रेन अधिक खराब हो जाने से स्थिति गंभीर हो जाती है ।
साल्मोनेल्लोसिस का रोक थाम क्या है । CONTROL OF SALMONELLOSIS
- जहां पशु ब्याएं , वहां पूरी सफाई रखनी चाहिए ।
- नवजात पशु को कोलोस्ट्रम पिलाना चाहिए तथा अधिक ठंड व गर्मी से बचाएं ।
- पशुओं को दूषित आहार , तालाब व पोखर का पानी नहीं पिलाएं ।
- रोगी पशु का तुरंत इलाज करवाना चाहिए ।
साल्मोनेल्लोसिस का मानव स्वास्थ्य पीआर क्या प्रभाव पड़ता है ।
मनुष्य में भी साल्मोनेल्लोसिस का भयंकर प्रकोप होता है । इसकी रोकथाम के लिए रसोई . रसोइएं तथा खाद्य पदार्थों को छूने वाले व्यक्तियों को साफ रहना चाहिए । दूध को उबाल कर पीएं या पाश्चराइज्ड दूध काम में ले । मनुष्य में इसका इन्फेक्शन दूषित ( contaminated ) पानी , दूध , मांस , अंडा , सब्जियां व अन्य खाद्य पदार्थों के खाने से होता है । रोगी को एकाएक पेट दर्द , दस्त , उल्टी व बुखार होता है । छोटे बच्चों , बूढ़ों व कमजोर व्यक्तियों में मौतें अधिक होती है ।
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