
यह त्वचा का एक रोग है जिसमें त्वचा पर छाले पड़ जाते हैं । हर्पिस तथा हर्पिस ज़ोस्टर दोनों अलग होते है ।
हर्पिस , त्वचा पर के छालों के झुण्ड को कहते हैं जिनमें से पतला स्राव निकलता है , उस पर छिछड़ा बनकर बिना निशान छोड़े अपने – आप झड़ जाता है । इसके बाद उस स्थान पर बेहद खुजली और जलन होती है , इतनी जलन कि रोगी परेशान रहता है । हर्पिस स्नायु मार्ग पर छाले पड़ जाने को कहते हैं । यहाँ हर्पिस के लिए उपयोगी दवा का वर्णन किया जा रहा है , हर्पिस जोस्टर का अलग सेक्शन है |
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हर्पिस का होम्योपैथिक दवा । HOMEOPATHIC MEDICINE OF HERPES
- मुख या होठों या किसी अन्य जगह पर दानेदार छाले जिनमें असह्य खुजली तथा जलन हो । यह कष्ट रात को 12 से 4 बजे बढ़ जाता है – आर्सेनिक ( Arsenicum alb . ) 30 , दिन में 3 बार
- सूजे हुए नितम्ब – प्रदेश पर दानेदार छाले । ये छाले मुख तथा होठों पर भी हो सकते हैं । खुजली तथा जलन भी होती है । यह दवा हरपीज़ में आमतौर से दी जाती है , अनेक रोगी इसी से ठीक हो जाते हैं रस टॉक्स ( Rhus tox . ) 30 , दिन में 3 बार
- जननेन्द्रिय पर ऐसे छाले जो खुजली तथा जलन करें- मर्क सौल ( Merc . sol . ) 30 दिन में 3 बार , इसमें नाइट्रिक ऐसिड ( Nitric acid ) 6 , सारसापिरिला ( Sarsaparilla ) 6 , नेट्रम म्यूर ( Natrum mur . ) 30 में से किसी औषधि का प्रयोग किया जा सकता है
- जब हरपीज़ सूख जाय और बेहद खुजली शुरु हो जाए , छाले नीले रंग के होते हैं । खुली हवा में रोग बढ़ जाता है , ठंडी हवा में भी बढ़ता है , हरकत से भी बढ़ता है – रेननक्युलस ( Ranunculus ) 3 या 30 , दिन में 3-4 बार
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