अक्सर कई लोगों को यह कहते सुना जाता है कि मेरा बच्चा सोते समय बिस्तर में पेशाब कर देता है । बच्चों द्वारा रात में सोते समय पेशाब करने की बीमारी को ‘ इन्यूरिसिस ‘ कहते है । इसे आम तौर पर बिस्तर भिगोना ( Bed Wetting ) कहा जाता है । इसमें बच्चे रात में अनजाने में पेशाब कर देते हैं । यह बच्चों के लिये एक कष्टदायक समस्या है ।

सामान्यतः दो से तीन वर्ष के बच्चों में मूत्राशय नियंत्रण ठीक ठाक हो जाता है और बच्चे पेशाब के लिये कहने लगते है परन्तु जब तीन वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों में सोते समय अनजाने ही बिस्तर पर पेशाब की समस्या पाई जाती है तब उसे ‘ इन्यूरिसिस ‘ कहा जाता है । यह समस्या लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में अधिक पाई जाती है ।
यह शिकायत प्रायः तीन से चौदह वर्ष के बच्चों में ज्यादा पाई जाती है । इसमें बच्चे रात्रि में सोने के तुरन्त बाद , पहली नींद के बाद या अर्धरात्रि में अथवा सुबह बिस्तर गीला करते है । कुछ बच्चों में यह विशेष मौसम प्राय : जाड़ों और बरसात में ज्यादा होती है । गहरी नींद में सोने वाले बच्चों में यह अधिक कष्टदायक समस्या है ।
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बच्चों द्वारा बिस्तर पर पेशाब करने की कारण क्या है ।
बच्चों में इस बीमारी के कई कारणों का पता चला है । इनमें बच्चे में तनाव , अशांति , उत्तेजना का बढ़ना प्रमुख है । कुछ बच्चे नये स्थान , नये स्कूल , नया पड़ोस या स्कूल में प्रतियोगिता के होने से तनाव ग्रस्त हो जाते है , जिसके कारण रात्रि में बिस्तर गीला कर सकते है । उत्तेजना पूर्ण कार्यक्रम जैसे जन्मदिन समारोह , विवाह या सरकस देखना , इस समस्या को बढ़ावा दे सकता है ।
वह बच्चे जिनमें एनीमिया , कुपोषण और कमजोरी है उनमें इस समस्या की सम्भावना ज्यादा हो सकती है । मूर्ख और मानसिक रूप से कम विकसित बच्चे भी मूत्र त्याग पर नियंत्रण को देर से सीख पाते है और अनियमित ढंग से पेशाब करने की समस्या से लम्बे समय तक ग्रस्त रहते है । कुछ बच्चों में यह बीमारी आदत अथवा प्रशिक्षण की कमी से भी हो सकती है उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त अन्य बहुत से कारण है जो ‘ इन्यूरिसिस ‘ को बढ़ावा देते है इन कारणों में मूत्राशय द्वार का अविकसित होना , मूत्राशय अधिक उत्तेजित होना , मिर्गी आना , मेरूदण्ड की सूजन , मूत्राशय में सूजन , मूत्रतन्त्र की बीमारियां आदि प्रमुख हैं । बच्चों की बिस्तर भिगोने की समस्या का उपचार होमियोपैथिक दवाइयों के माध्यम से पूरी तरह सम्भव है । ‘ इन्यूरिसिस ‘ के उपचार में जो होमियोपैथिक औषधियां लाभदायक है वे नीचे बताए गए हैं ।
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मुख्य होम्योपैथिक औषधियां –
- मुख्य दवा पल्साटिला ( Pulsatilla ) 30
- बच्चा गहरी नींद के दौरान बिस्तर गीला करे | इसका कारण सोते समय पेशाब रोकने वाली संकुचक – पेशियों का ढीला पड़ जाना होता है , इस कारण कोई – कोई बच्चा दिन में भी पेशाब कर देता है – बेलाडोना ( Belladonna ) 30 दिन में 2-3 बार I
- यदि पेशाब में तीव्र गंध हो , अम्ल की प्रतिक्रिया होती हो , पेशाब में फास्फेस्ट या श्लेष्मा नीचे जमता हो तो उपयोगी है। – एसिड बैंजोयिक ( Acid benzoic ) 30 दिन में 2-3 बार I
- स्नायु दौर्बल्य के कारण , तेज प्यास , जीर्ण – शीर्ण के एवं कमजोर बालकों में रोगी को बहुत बार पेशाब करने को उठना पड़ता है । चीनी के साथ एवं बिना चीनी वाला पेशाब दोनों तरह के बहुमूत्र में लाभप्रद है – एसिड फासफोरिक ( Acid phos . ) 30 दिन में 2-3 बार ।
- पेशाब में तेज गंध , मूत्र नली के मुंह पर तेज सुई चुभने जैसी पीड़ा , गण्डमाला ग्रस्त धातुवाले शिशुओं के लिए एवं वंशगत उपदंश होने पर उपयोगी है। – एसिड नाईट्रिक ( Acid nitric ) 30 दिन में 2-3 बार ।
- पेट में कृमि के कारण बिस्तर गीला करना , बालकों में कृमि के लक्षण रहने पर विशेष उपयोगी है – सिना ( Cina ) 30 या 6 दिन में 2-3 बार I
- पेशाब रोकने में असमर्थता , खांसने या छींकने पर पेशाब हो जाये , ब्लैडर की गर्दन शिथिल होने में रात्रि के प्रारम्भ में पेशाब कर देता है । जाड़े में अधिक बार पेशाब करता है – कास्टिकम ( Causticum ) 30 दिन में 2-3 बार ।
- जिन शिशुओं में दांत कष्ट से निकलते हैं , और निकलते ही क्षय होने लगते है । बच्चों को जगाना बहुत मुश्किल , बालक स्वप्न में ऐसा महसूस करते हैं , जैसे पेशाब करने के स्थान पर ही पेशाब कर रहे है । – क्रियोजोट ( Kreosotum ) 30 या 6 , दिन में 2-3 – बार ।
- गण्डमाला ग्रस्त धातु वाले शिशुओं में लक्षण मिलने पर यह विशेष रूप से उपयोगी है । – थायरायडीनम ( Thyroidinum ) 30
- यह दवा 2-3 माह तक देने से काफी लाभ होता है – ब्लूमिया आडोरेटा ( Blumea odorata ) Q , दिन में दो बार 5-5 बूंद एवं यदि साथ में कृमि की शिकायत भी हो तो सिना ( Cina ) 200 की 1-2 खुराक सप्ताह में एक बार देने से काफी लाभ होता है ।
होम्योपैथिक औषधियों की तुलनात्मक स्थिति :–
- पहली नींद के बाद पेशाब आता है तो क्रियोजोट ( Kreosotum ) , यदि ठंड मौसम में यह शिकायत हो एवं पहली नींद में ही पेशाब हो जाय तो ” कास्टिकम ( Causticum ) ” दें ।
- बच्चा रोज यह सोचता है कि वह यह गलती नहीं करेगा फिर भी पेशाब हो जाता है तो ” सैनीक्यूला ( Sanicula ) ” देवें ।
- यदि रोगी जानवरों के व अन्य डरावने स्वप्न देखता है और ठंड ज्यादा महसूस करता है तो ” ट्यूबरक्यूलीनम ( Tuberculinum ) ” लाभ होगा ।
- जैसे ही पेशाब की हाजत ( पेशाब जाने की इच्छा ) हो , नींद खुल जाय पर वह पेशाब के वेग को रोक नहीं सके तो ” फैरमफास ( Ferum phos . ) 6X ” एवं ” कलकेरिया फास ( Calc . phos . ) 6X ” देने से फायदा होता है ।
- जब तक करवट के बल सोते रहते हैं यह शिकायत नहीं होती , सीधा सोते ही शिकायत हो तो पल्सेटिला ( Pulsatilla ) देने से लाभ होता ।
- यदि अन्य सब औषधियां विफल हो जाय तो एक मात्रा ” सल्फर ( Sulphur ) 200 ” की देना चाहिए , उससे या तो रोग ठीक हो जायगा या रोग के ऐसे लक्षण स्पष्ट हो जायेंगे जिनके आधार पर औषधि चुनाव करने में सहायता मिलेगी ।
बच्चों पर ध्यान रखने योग्य बातें :–
बच्चे को सही आदत डलवानी चाहिए जैसे सोने के एक घंटे बाद पेशाब के उठाना , ज्यादा तरल पदार्थ या पेय पदार्थ का सेवन से रोकना , अगर बच्चा मधुमेह , गठिया या अन्य रोग से पीड़ित हो तो इसका पूरा इलाज किया जाना चाहिए | माता – पीता को ध्यान रखना चाहिए की ऐसे बच्चों को ज्यादा डांटना नहीं चाहिए तथा उन्हें हीनभावना से ग्रसित नहीं होने देना चाहिए ।
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