मूर्ति पूजा क्यों करें ? मूर्ति पूजा से क्या लाभ हैं ?

उपासना की पंचम श्रेणी मूर्ति पूजा है । मनुष्य का चंचल मन इधर – उधर भटकता है । चाहकर भी लोग अपने मन की चंचलता को नहीं रोक पाते । मन की चंचलता को रोकने का एकमात्र साधन है – मूर्तिपूजा । हनुमान जी को सिन्दूर क्यों चढ़ाया जाता हैं ।
चंचल मन यदि बिना मूर्ति के स्थिर नहीं हो पा रहा है , तब मूर्तिपूजा के अतिरिक्त अन्य कोई साधन नहीं है । मूर्ति पर दृष्टि रखने से उस मूर्ति के प्रति भावना जागृत होती है और वह भावना ही मन की चंचलता को केन्द्रित करती है ।
मूर्ति पूजा का प्रचलन सनातन हिन्दू धर्म में ही नहीं बल्कि अन्य धर्म के लोगों में भी है । सिक्ख लोग ‘ गुरु ग्रन्थ साहब ‘ की पूजा करते हैं , ईसाई लोग पवित्र ‘ क्रास ‘ की , मुसलमान लोग ‘ कुरान शरीफ ‘ को चूमते हैं । महाभारत काल के प्रमाण एकलव्य ने द्रोणाचार्य को गुरु माना जबकि द्रोणाचार्य ने एकलव्य को शिष्य रूप में स्वीकारने से मना कर दिया फिर भी एकलव्य ने उन्हें गुरु मानकर उनकी मिट्टी की प्रतिमा बनाकर बाण – विद्या सीखी । अर्थात् भावना को उभारने के लिए मूर्ति आवश्यक हैं ।