
विवाहित स्त्रियां अन्य आभूषण पहनें या न पहनें , लेकिन उनके गले में धारण किया मंगलसूत्र सौभाग्यवती रहते कभी अलग नहीं होता , क्योंकि हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार विवाहित नारी के सुहाग और अस्मिता से जुड़ा मंगलसूत्र एक ऐसी अमूल्य निधि है , जिसका स्थान न तो कोई अन्य आभूषण ले सकता है और न उसका मूल्य ही आंका जा सकता है । इसे सुहाग के प्रतीक के रूप में स्त्रियां धारण करती हैं और पति के देहांत के बाद ही इसे उतारकर पति को अर्पित कर देती हैं ।
आम रिवाज यह है कि विवाह के अवसर पर वधू के गले में वर मंगलसूत्र पहनाता है । अनेक दक्षिण राज्यों में तो विवाह की रस्म तब तक अधूरी ही मानी जाती है , जब तक कि वर अपने हाथों से वधू को मंगलसूत्र न पहना दे , फिर भले ही 7 फेरे भी पूरे क्यों न कर लिए हों । मंगलसूत्र में काले रंग के मोतियों की लड़ियां , मोर एवं लॉकेट की उपस्थिति अनिवार्य मानी गई है । इसके पीछे मान्यता यह है कि लॉकेट अमंगल की संभावनाओं से स्त्री के सुहाग की रक्षा करता है , तो मोर पति के प्रति श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक है और काले रंग के मोती बुरी नजर से बचाते हैं तथा शारीरिक ऊर्जा का क्षय होने से रोकते है ।
चांदी और सोने से बने मंगलसूत्र काफी प्रचलित हैं , लेकिन अधिकांश महिलाएं सोने के मंगलसूत्र पहनना पसंद करती हैं , सोना शरीर में बल और ओज बढ़ाने वाली धातु है तथा है समृद्धि की प्रतीक है । मंगलसूत्र के संबंध में धार्मिक मान्यता है कि इसे एक बार पहनने के बाद सुहाग रहने तक उतारा नहीं जाता । ग्रामीण , सामान्य परिवारों की कम पढ़ी – लिखी महिलाएं मंगलसूत्र के खोने या टूटने को भावी । अमंगल की आशंका मानती हैं , जबकि पढ़ी – लिखी महिलाएं ऐसा नहीं मानतीं । वे तो रात में इसे उतारकर भी रख देती हैं ।