
श्वास यन्त्र और हृदय की क्रिया अच्छी तरह न होने के कारण बच्चों को यह रोग हो जाता है । यह रोग होने पर बच्चे के होंठ और गला बदरंग हो जाते हैं , समूचा शरीर नीला पड़ जाता है और शरीर की गरमी का कम जाना , मांसपेशियों का अकड़ जाना , नाड़ी – स्पन्दन और हृदस्पन्दन का कम हो जाना इत्यादि लक्षण प्रकट होते हैं ।
बच्चों के नील रोग का होम्योपैथिक दवा । Homeopathic medicine for Still Born Child – Blue Stage
- डिजिटेलिस 30 या 200 ( 2 बुंद 2 बार ) – यह इस रोग की सर्वप्रधान दवा है । चेहरा , मुख , होंठ , जीभ , नख और समूचे शरीर का नीला पड़ा जाना , बच्चे को जरा भी हिलाने से उसका बेहोश हो जाना , कलेजे का धड़कना इत्यादि ।
- अर्निका 30 या 200 ( 2 बुंद 3 बार ) – शरीर नीला , साँस बन्द , नाक और मुँह से रक्तस्राव होना इत्यादि ।
- आर्सेनिक 30 या 200 (2 बुंद 2 बार) – समूचा शरीर नीला और बरफ की तरह ठण्ढा हो जाने पर इसे देना चाहिये ।
- फोस्फरस 6 या 30 – पैरों का फूल जाना , साथ ही श्वासकष्ट होना इत्यादि ।
- एकोनाइट 30 या 200 (2 बुंद 3 बार)- शरीर साधारण गरम , नाड़ी में साधारण स्पन्दन , धीमा श्वास – प्रश्वास , शरीर नीला इत्यादि ।
- एन्टिम टार्ट ६x – श्वास और नाड़ी का स्पन्दन बन्द , शरीर का रङ्ग फीका हो जाना इत्यादि ।
- लेकेसिस ३० ( 4 बुंद 2 बार ) – शरीर नीला , सोने के बाद श्वास – प्रश्वास का बन्द हो जाना इत्यादि ।
- कार्बोवेज 6 या 30 ( 4 बुंद 3 बार )- शरीर की समस्त नसें नीली हो जाने पर इसे देना चाहिये । इसके अतिरिक्त रसटक्स , हाइड्रोसियानिक एसिड और सल्फर आदि दवाओं से भी लाभ होता है ।
आवश्यक सूचना –
यह रोग बच्चों को प्रायः सौरीघर में ही होता है । इसे भूत – व्याधि मानकर झाड़ – फूँकके फेरमें न पड़ना चाहिये और चतुर चिकित्सक द्वारा तुरन्त इलाज कराना चाहिये । बच्चेको सरदीसे बचाना और दाहिनी करवट सुलाना लाभदायक है । सौरीघरमें धुआँ या गन्दगी न होने देना चाहिये ।
इसे पढ़ें – बच्चों के पेट में शूल (दर्द) का होम्योपैथिक उपचार । ( Colic of Infant )