
अन्य नाम – खुरारा , रपका – मुंहपका रोग ।
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खुरपका , मुंहपका रोग क्या है ?
यह एक तेजी से फैलने वाला वाइरल संक्रामक रोग है जो प्रायः जुगाली करने वाले तथा विभाजित खुर वाले पशुओं में पाया जाता है । इस रोग में पशु को तेज फीवर होता है तथा मुंह , खुर अडर व थनों पर छाले पड़ जाते हैं । गाय , भैंस , भेड़ , बकरी तथा सुअरों में यह रोग खूब फैलता है । हालाकि इस रोग से मौत तो अधिक नहीं होती है लेकिन रोग से ठीक हो जाने पर भी पशुओं की कार्यक्षमता , दूध व ऊन उत्पादन क्षमता काफी कम हो जाती है । इसलिए इस रोग का आर्थिक महत्व अधिक है । इसके कारण भारत में प्रति वर्ष भारी आर्थिक नुकसान होता है |
उत्तरी अमेरिका , ब्रिटेन , आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैण्ड को छोड़कर यह बीमारी दुनियां के सभी भागों में पायी जाती है । एशिया में भारत , नेपाल , श्रीलंका , बर्मा में यह बड़े पैमाने पर फैलती है | पशुओं में यह सबसे अधिक गायों में पायी जाती है । देशी नस्लों की अपेक्षा क्रॉस ब्रेड गायों में यह रोग अधिक पाया जाता है ।
खुरपका – मुंहपका रोग (FOOT AND MOUTH DISEASE) का होने का कारण क्या है ?
ETIOLOGY :-
यह रोग वाइरस के कारण होता है सबसे छोटे आकार का यह वाइरस ” Picorna ” virus group से सम्बन्धित है । ये प्रमुख रूप से सात प्रकार के होते हैं । A , O.C , SAT – 1 , SAT 2 , SAT – 3 , ASIA SAT – 1 , सातों प्रकार के वाइरस लगभग एक ही प्रकार के लक्षण प्रकट करते हैं लेकिन एक ही प्रकार के वाइरस से ठीक हुआ पशु दूसरे प्रकार के वाइरस की चपेट में आ सकता है ।
भारत में A , O , Cand ASIA – 1 द्वारा रोग होता है । गायों में रोग सबसे अधिक पाया जाता है । संक्रमित क्षेत्र में ये एक वर्ष तक जीवित रह सकते हैं । गर्मी से तो ये नष्ट हो जाते है लेकिन ठंड का कोई असर नहीं पड़ता है । साधारण जीवाणुनाशक घोल का भी खास असर नहीं होता है । सोडियम हाइड्रोक्साइड , फॉर्मेलिन , सोडियम कार्बोनेट से ये नष्ट हो जाते हैं ।
खुरपका – मुंहपका रोग (FOOT AND MOUTH DISEASE) कैसे फैलता है?
TRANSMISSION :-
मुख्य रूप से यह रोगी पशु के सीधे सम्पर्क में आने से तेजी से फैलने वाला रोग है । इसके अलावा रोगी पशु की लार के सम्पर्क में आने से दूषित आहार , पानी के प्रयोग से स्वस्थ पशुओं में फैलता है । रोगी पशु के सम्पर्क आए बिना भी यह वाइरस इन्फेक्शन हवा के द्वारा भी एक से दूसरे स्थान तक पहुंच जाता है । जब वातावरण में रात को नमी अधिक होती है उस समय नम हवा के द्वारा भी अधिक फैलता है । इसके अलावा चिड़िया , मांसाहारी पशु – पक्षी व मनुष्य द्वारा भी रोग फैलाने में सहायक होते हैं ।
एक बार रोग से ठीक हो जाने वाली गाय के शरीर में लगभग दो वर्ष तक वाइरस जीवित रह सकते हैं और ऐसे पशु केरियर की तरह रहकर अन्य पशुओं में भी रोग पहुंचा देते हैं । रोगी पशु की लार , दूध , मूत्र , गोबर , मांस आदि में ये वाइरस पाये जाते हैं । तथा बाहर इनके द्वारा आसपास के वातावरण को भी संक्रमित कर देते हैं जिनके सम्पर्क में आने से अन्य स्वस्थ पशुओं में भी रोग फैल जाता है ।
खुरपका – मुंहपका रोग (FOOT AND MOUTH DISEASE) का रोगजनन ।
PATHOGENESIS :-
मुंह , नाक , सम्पर्क आदि किसी भी तरह से वाइरस शरीर में प्रवेश करते हैं तो सबसे पहले ब्लड में पहुंचते हैं ।
FMD Virus Blood → Viral Septacaemia → Affinity for epithelium of mouth , teats and feet → Localization with characteristic lesions after 1-2 days ( usually 3-8 days ) .
खुरपका – मुंहपका रोग (FOOT AND MOUTH DISEASE) का लक्षण क्या है ?
SYMPTOMS – Incubation period – 2-8 days
- इस रोग में रोगी पशु की मौत कम ही होती है । संकर नस्ल के पशुओं में देसी नस्ल की गायों की अपेक्षा अधिक मौत होती है ।
- रोग के लक्षणों की गंभीरता वाइरस के प्रकार तथा पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर निर्भर करती है ।
- सबसे पहले 1-2 दिन तक तेज फीवर ( 1049-106 ° फा . ) , ब्लड में वाइरस की तेज व द्धि के कारण तेज फीवर होता है ।
- पशु सुस्त , खाना व जुगाली करना बंद कर देता है ।
Mouth Lesions
- मुंह में पीड़ादयक सूजन ( stomatitis ) रस्सी की तरह लम्बाई में लार गिरना । ( drooping salivation )
- टेम्प्रेचर , मुंह , जीभ , मसूढों आदि पर छाले ( vesicles )
- मुंह में चपचपाहट की खास आवाज , लार अधिक , जीभ थोड़ी बाहर ।
- 24 घंटों में ही छाले फूटकर लाल धब्बे अल्सर जैसे हो जाते हैं जो बाद में एक सप्ताह में भर जाते हैं ।
- मुंह में घाव के कारण पशु चारा – दाना भी नहीं खा पाता है ।
Foot lesions
- पशु के खुरों के बीच व ऊपर कोरोनट ( caronet ) पर छाले ( vesicles ) बन जाते है जो बाद में फट जाते हैं । कोरेनट पर सूजन भी आ जाती है ।
- पशु न पूरी तरह खड़ा रह पाता है न चल पाता है ।
- खुरों के बीच घावों का इलाज न होने पर मेगट पड़ जाते हैं ।
Udder and teat lesions
- अडर पर बहुत कम जबकि थनों पर बड़े छाले ( vesicles ) बन जाते हैं । थनों के टिप पर बड़े छाले बनते हैं , दूध दुहते समय दर्द होता है।
- दूध गादी यानी अंडर में रह जाने से मेस्टाइटिस हो सकती है ।
- आखिर में पशु कमजोर हो जाता है , ग्याभन में गर्भपात भी हो सकता है ।
- यदि एफ.एम.डी. का इलाज नहीं किया जाए तो पशु में मेस्टाइटिस , गर्मपात , खुर पकना , धूप में हाफना , सांस में तकलीफ , गर्मी सहने की कम क्षमता , शरीर के बालों का बढना आदि जैसी समस्याएं पैदा हो जाती है ।
- हालांकि इनमें पशुओं की मौत कम होती है लेकिन जो मौतें होती है उनमें अधिक उम्र की बजाय यंग एनिमल्स में अधिक होती है ।
- मुंह में छालों की स्थिति में पशु की हार्ट फेल होने से मौत होती है । बिना कोई लक्षण प्रकट किए भी एकाएक मौत हो सकती है ।
खुरपका – मुंहपका रोग (FOOT AND MOUTH DISEASE) का पहचान क्या है ?
DIAGNOSIS :-
- मुंह व खुरों पर छालों ( vesicles ) के खास लक्षण ( lesions )
- लेबोरेट्री टेस्ट मुंह के अंदर छालों व उनसे निकलने वाले फ्लूड को 50 % buffer glycerine में डालकर एकत्रित किया जाता है तथा जांच द्वारा डायग्नोसिस किया जाता है ।
- Differential diagnosis- Rinderpest , Vesicular stomatitis , में डालकर एकत्रित किया जाता है तथा जांच द्वारा डयग्नोसिस किया जाता है ।
- Differential diagnosis – Rinderpest , Vesicular stomatitis , Mucosal disease and Malignant Catarrhal fever .
खुरपका – मुंहपका रोग (FOOT AND MOUTH DISEASE) इलाज क्या है?
TREATMENT :-
- FMD एक वाइरल रोग है इसका कोई विशेष इलाज नहीं है । सिर्फ सैकण्ड्री इन्फेक्शन को रोकने के लिए तथ लक्षणों व लिजन्स का असर कम करने के लिए दवाइयां दी जाती हैं ।
- एंटिसेफ्टिक वाश – मुंह व खुर के घावों को लाल दवा ( पोटे , परमेग्नेट ) के हल्के घोल से दिन में दो बार धोएं ।
- धोने के बाद छालों पर सोडा , बाइकार्बोनेट य बोरोग्लिसरीन का लेप करना लाभदायक होता है । एंटीबैक्टीरियल पाउडर क्रीम भी लगाया ज सकता है ।
- इस दौरान एनिमल को मुलायम आहार ( दलिया , हरा चारा आदि ) ही दें ।
- Inj . Lemasole – 1 ml / 30 gb.wt. S / C
- Antipyretic , B. Complex injection .
- Antibiotics – सैकण्ड्री इन्फेक्शन को रोकने के लिए । – Inj . Tetracycline – 1 ml / 30 kg . b.wt.
- Maggot wound – घाव में मेगट पड़ जाने पर टरपेन्टाइन ऑयल का गॉज भरे । अगले दिन से ड्रेसिंग करें ।
खुरपका – मुंहपका रोग (FOOT AND MOUTH DISEASE) से रोक थाम कैसे करें ?
CONTROLO OF FOOT AND MOUTH DISEASE) :-
- विदेशों में रोगग्रस्त पशुओं को स्लॉटर कर दिया जाता है जो कि भारत में अभी यह संभव नहीं है ।
- स्वस्थ पशुओं को रोगी पशुओं के सम्पर्क से बचाएं ।
- दूध दूहने से पहले व बाद में हाथों को हल्के लाल दवा के घोल से धोएं ।
- रोगग्रस्त गाय का दूध बछड़े को नहीं पीने देना चाहिए ।
- वैक्सिनेशन :-
पहली बार बछड़ों में 4 माह की उम्र पर वैक्सीन लगाएं ।
बूस्टर – पहले इंजेक्शन से 2-4 महीने बाद दुबारा वैक्सीन लगाएं फिर बाद में हर छ : महीने बाद टीकाकरण करें ।
खुरपका – मुंहपका रोग (FOOT AND MOUTH DISEASE) का होम्योपैथिक {Homeopathic} दवा:-
- आर्सेनिकम ( Arsenicum ) :- रोग की शुरूआती अवस्था में 5 बूंदें दिन में तीन बार तीन दिन तक दें ।
- मर्युरियस सॉलुबिलिस ( Mercurius Solubilis ) :- जब रोगी पशु के मुंह में छाले फूट कर घाव या अल्सर जैसे बन जाते हो , मुंह से चपचप की आवाज आती हो , ब्लड मिला हुआ डिस्चार्ज निकलता हो तो हर चार घंटे बाद पांच दिन तक दें ।
- रस टॉक्स ( Rhus Ttox ) :- जब पैरों के घाव व सूजन के कारण चलने में दर्द हो , मुंह में सूजन व दर्द हो तो दिन में चार बार पांच दिन तक दें ।
- नेट्रम म्युरिएटिकम ( Natrum Muriaticum ) :- रोगी पशु के मुंह से लगातार लार गिरने , पूरी मात्रा में पानी नहीं पीने , फीवर से जब डिहाइड्रेशन हो तो इस दवा को दिन में चार बार चार दिन तक दें ।
- फेरम फॉस ( Ferrum Phos ) :- जब रोगी पशु शारीरिक रूप से कमजोर हो गया हो तो इसे नेट्रम म्यूर के साथ एक के बाद दूसरी दें । इसे हर चार घंटे रोगी ठीक होने तक दें ।
- बोरेक्स ( Borax ) :- मुंह में छाले हो तो मर्क सॉल , आर्सेनिकम के साथ दिन में चार बार दें ।
- ऊपर वर्णित छ : दवाइयों के मिक्चर को दिन में पांच दिन तक देने से भी काफी लाभ होता है ।
- पांचों फॉस + अल्फा अल्फा ( Five Phos + Alfa Alfa ) :- जब रोगों के लक्षण खत्म हो जाए तो पशु की शारीरिक दुर्बलता दूर के लिए इस मिक्चर को दिन में दो बार दस दिन तक दें । .
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