यह पशुओं के रेस्पिरेटरी सिस्टम का एक फंगल रोग है । जिसमें फेंफड़ों में रोग के लक्षण बनते हैं तथा गर्भपात भी हो सकता है । वैसे गाय , भैंसों में यह कम पाया जाता है लेकिन अब धीरे – धीरे यह रोग बढ़ रहा है मुख्य रूप से यह पक्षियों का रोग है ।
भारत में प्राप्त आंकड़ों के अनुसार इससे कभी – कभी पशुओं में गर्भपात भी हो जाता है । यह रोग मनुष्य में भी पाया जाता है । फंगस के टॉक्सिन से मनुष्य व पशु की मौत भी हो सकती है ।

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एस्पजिल्लोसिस का कारण क्या है । ETIOLOGY OF ASPERGILLOSIS
Fungus – Aspergillus species
इस फफूदी के स्पोर चारा व सूखी घास में सामान्य तौर पर पाये जाते हैं । जबकि वातावरण में उचित तापक्रम व नमी होती है ये फंगस चारे , सड़ते हुए पेड़ पौधों की पत्तियों व मृत पशुओं के अवशेषों आदि पर उगते हैं और स्पोर बनाते हैं ।
ये फंगस कॉलोनी विभिन्न रंग के पाउडर की तरह दिखती है । सड़ी गली खाद्य वस्तुओं तथा नमी वाले पशु दाने पर ये आसानी से वृद्धि करती है । फंगस के स्पोर आहारनली द्वारा तथा सांस द्वारा ( inhalation ) शरीर में प्रवेश करते हैं । रोगी पशु के सीधे सम्पर्क में आने से रोग नहीं फैलता है ।
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एस्पजिल्लोसिस रोग का जनन कैसे होता है । PATHOGENESIS OF ASPERGILLOSIS
सांस व मुंह के जरिए जब स्पोर शरीर में प्रवेश करते हैं , तो वहां से ब्लड के जरिए फेफड़ों व त्वच तक पहुंचते हैं । इसके अलावा अन्य अंगों में भी पहुंच सकते हैं । ग्याभन पशुओं की प्लेसेन्टा में सूजन पैदाकर माइकोटिक एबोर्शन कर देते हैं यद्यपि एपजिलस फंगस ज्यादा हानिकारक नहीं होती है लेकिन शरीर की कई स्थितियों में ये रोग पैदा कर अधिक हानिकारक रूप धारण कर लेते हैं । जैसे –
–लम्बे समय तक एंटीबायोटिक्स का प्रयोग ।
–लम्बे समय तक कॉर्टिकोस्टेरोइड का प्रयोग ।
–पौष्टिक आहार की कमी ( Malnutrition )
–क्षय रोग ( Tuberculosis )
एस्पजिल्लोसिस का लक्षण क्या है । SYMPTOMS OF ASPERGILLOSIS
गायों के शरीर में लम्बे समय तक बिना कोई लक्षण प्रकट किए फंगल इन्फेक्शन रहता है लेकिन अनुकूल परिस्थितियों में भारी इन्फेक्शन से रोग के निम्न लक्षण प्रकट होते है –
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- शुरू में तेज बुखार , जो बाद से कम हो जाता है ।
- गर्र – गर्र की आवाज के साथ तेज सांस , सांस में तकलीफ , नाक से डिस्चार्ज , सूखी खांसी ।
- फेफड़ों में गांठे बनना ।
- घोड़ों में गटरल पाऊचों में इन्फेक्शन पहुंच जाने से नाक से गहरा मवाद सा डिस्चार्ज आता है ।
- भेड़ों में इसमें फेंफड़ों में लक्षण पाये जाते हैं ।
- मनुष्य में इसमें हृदय की मांसपेशियों में इन्फेक्शन हो जाने से कई बार मौत भी हो जाती है ।
- अधिक उम्र की गायों , घोड़ियों व भेड़ों में गर्भपात हो जाता है ।
- चारे , दाने व अन्य खाद्य पदार्थों में यह फंगस ऐफ्लाटॉक्सिन पैदा करती है ऐसे आहार को खाने से मनुष्य , पशु व पक्षियों में मौत हो सकती है ।
एस्पजिल्लोसिस का उपचार क्या है। TREATMENT OF ASPERGILLOSIS
- एपजिल्लोसिस का कोई प्रभावी इलाज नहीं है इस रोग के अधिकतर पशु , पक्षी व मनुष्य में रोग का डायग्नोसिस मौत के बाद ही हो पाता है इसलिए इलाज करने का मौका ही नहीं मिल पाता है ।
- लेबोरेट्री एनिमल्स में पोटेशियम आयोडाइड के घोल को खरगोश में देने से कुछ हद तक जीवनकाल बढ़ जाता है । पोटे . आयोडाइज को ही मनुष्य व अन्य पशुओं में प्रयोग में लिया जाता है ।
एस्पजिल्लोसिस का रोक थाम क्या है । CONTROL OF ASPERGILLOSIS
- रोग के बचाव के लिए फंगस पनपने की जगहों को साफ रखना चाहिए । समय समय पर फंगस को मारने वाले घोल छिड़कने चाहिए ।
- पशु के चारा – दाने में नमी नहीं होने देना चाहिए । यदि खाद्य पदार्थों पर फंगस लगी हो तो उसे पशु को नहीं खिलाना चाहिए ।
- फंगस वाली चीजों को जलाकर नष्ट कर देना चाहिए ।
- एपजिल्लोसिस का कोई वैक्सीन भी उपलब्ध नहीं है ।