त्वचा पर विभिन्न कारणों से बनने वाली एब्सेस की स्थिति के अनुसार होम्योपैथिक दवा का सलेक्शन किया जाय तो बेहतर परिणाम मिलते हैं । जैसे मांसपेशियों में चोट से सिर्फ सूजन , सूजन में दर्द , लालिमा , सूजन में मवाद नहीं होने की स्थिति , एब्सेस में मवाद बनने की स्थिति , यदि मवाद बन गई हो तो एब्सेस के पकने के बाद फूटने की स्थिति तथा एब्सेस फूटने के बाद मवाद बहने की स्थिति इन सभी में अलग – अलग दवाइयों का प्रयोग किया जाय तो अच्छे नतीजे मिलते हैं ।
- एकोनाइट ( Aconite ): किसी रोग , चोट आदि में जब बुखार हो तो एकोनाइट दें । इसे रोग की पहली अवस्था में दें ।
- अर्निका ( Arnica ) : गिरने , चोट लगने , कुचल जाने से उत्पन्न दर्द में यह काफी उपयोगी दवा है । इसके अलावा बहुत दिन पहले चोट लगकर कोई रोग पैदा हो गया हो और वह किसी तरह आराम नहीं देती हो तो अर्निका की हाई पोटेन्सी से ठीक हो सकती है ।
- कैलेण्डुला ( Calendula ): चोट के कारण त्वचा या मांस कट – फट जाने पर मुंह से तथा पानी में काफी पतला कर बेंडेज के रूप में बाहरी प्रयोग करें ।
- सिम्फाइटम ( Symphytum ): हड्डी में चोट या हड्डी टूट जाने पर मुंह द्वारा बाहरी रूप से प्रयोग करें । प्रायः पकी ( mature ) तथा बिना पकी हुई ( Immature abscess ) में चार तरह की दवाइयां प्रयोग में ली जाती हैं । बेलाडोना , मर्क सोल , हिपर सल्फ तथा साइलीसिया ।
- बेलाडोना ( Belladona ): पहली अवस्था जब सूजन , दर्द तथा लालिमा हो ।
- मर्क सोल ( Merc solu ): मवाद बनने से पहले जब मवाद नहीं बनती हो कम बनती हो तो मर्क सोल दें । जब मवाद बन जाती है तो मर्क सोल उसे बढ़ाकर पका देती है । तब एब्सेस मेच्योर होकर फट जाती है ।
- हिपर सल्फ ( Hepar Sulph ): यह मर्क सोल से ज्यादा उपयोगी है । जब एक्सेस पकी हुई नहीं हो तो उस समय हिपर सल्फ 200 या इसमें अधिक पोटेन्सी में प्रयोग करें । इसके अलावा जब मवाद बन जाती है , मवाद चाहे अंदर हो या नीचे की ओर तो हिपर सल्फ की कम पोटेन्सी प्रयोग करने से भी मवाद खींचकर बाहर आ जाती है । इसी गुण के कारण होम्योपैथिक डॉक्टर हिपर सल्फर को होम्योपैथिक नश्तर की छूरी ( lancet ) कहते हैं ।
- साइलिसिया ( Silicea ): एब्सेस की मवाद जब जल्दी नहीं सूखती हो , मवाद पहले रस की तरह या मांस धोए पानी की तरह , ब्लड मिला जैसा , बदबूदार डिस्चार्ज , एब्सेस से आराम होने पर भी वहां कई दिनों तक कड़ापन बना रहे तो साइलिसिया से लाभ होता है । किसी भी तरह का घाव न सूखने पर गन पाउडर 3x दें । हिफर सल्फ व साइलिसिया दोनों का प्रयोग मवाद रोकने के लिए किया जाता है । जब मवाद मक्खन की तरह गाढ़ी हो तथा दर्द हो तो हिपर दें तथा जब मवाद पतली ब्लड मिली हुई , मांस धोए पानी की तरह हो तथा दर्द नहीं हो तो साइलिसिया दें । जब एब्सेस की सूजन की अवस्था खत्म होने के बाद भी सूजन रहती हो , मवाद नहीं बनती हो न पकती हो और न ही बैठती हो उस समय साइलिसिया 3x या 6x बार बार दें इससे एब्सेस जल्दी ही पक जाएगी और फट जाएगी ।
- आर्सेनिकम ( Arsenicum ): यदि सूजन अधिक हो . बदबूदार मवाद निकलती हो , मवाद का रंग गंदा तथा गाढ़ी हो , एब्सेस के घाव के किनारे मोटे उभरे हुए हो और दर्द हो । पांच – छ बूंद दिन में एक बार आर्सेनिकम दें ।
सारांश- एक्सेस में प्रमुख दवाएं बेलाडोना , मक्युरियस , हिपर व साइलीसिया है ।
( a ) पहली अवस्था- जब सूजन , दर्द , लाल हो , बेलाडोना , मक्युरियस , हिपर , पल्सेटिला , सल्फर ।
( b ) दूसरी अवस्था- नरम , मवाद बनना शुरू । काली म्यूर हिपर सल्फ ,मक्युरिस , आर्सेनिक , साइलीसिया , सिपिया ।
( c ) तीसरी अवस्था- मवाद बनने एब्सेस फोड़ने के लिए । हिपर , सल्फ , साइलीसिया , माइरिस्टिका ।
( 1 ) बेलाडोना- शुरूआती अवस्था तब एब्सेस मेच्योर नहीं हो , स्थान लाल , एब्सेस की जगह गरम , कठोर , लाल , तेज दर्द ।
( 2 ) मयुरियस वाइवस – बेलाडोना देने के बाद दर्द कम हो जाता है और मक्युरियस से एब्सेस दब जाती है । मवाद बनने के बाद प्रयोग करने से मवाद की मात्रा बढ़ा देती है और एब्सेस मेच्योर हो जाती है । मेच्योर एब्सेस के लिए इसकी कम पोटेन्सी की दवा को बार बार प्रयोग करना चाहिए जबकि मवाद बनने से पहले एब्सेस दबाने के लिए हाइ पोटेन्सी का प्रयोग करना चाहिए ।
( 3 ) हिपर सल्फ – शुरूआती अवस्था में जब एब्सेस मेच्योर नहीं हो , हाथ लगाने से ही बहुत तेज दर्द हो , मवाद बनने की शुरूआत हो , उस समय 200 या इससे अधिक पोटेन्सी की दवा देने से एब्सेस दब जाती है । यदि एब्सेस में मवाद नीचे हो तो हिपर की कम पोटेन्सी बारबार प्रयोग करने से मवाद ऊपर आ जाती है और एब्सेस जल्दी ही फट जाती है । इसी कारण हिपर को नश्तर की छूरी ( lancet ) कहते है ।
( 4 ) साइलीसिया- एब्सेस फटने या स्केलपल से खोलने के बाद मवाद को हटाने के लिए मुंह से साइलीसिया या मर्क सौल दें तथा घाव पर केलेण्डुला मल्हम लागाएं ।